शार्ट स्टोरी चैलेंज की दूसरी कहानी
जॉनर- प्रेरक
मधुरिमा, एक बहुत ही बढ़िया अध्यापिका थी। उसके बच्चे उसे बेहद पसंद करते थे। क्योंकि उसके पढ़ाने का तरीका बच्चों को बहुत पसंद आता था। वो खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाई करा देती थी और बच्चों को पता भी नहीं चलता था।
हंसमुख स्वभाव के कारण वो ना केवल छात्रों में बल्कि स्कूल की अन्य अध्यापिकाओं में भी बहुत प्रसिद्ध थी। इतनी गुणवान होने के बावजूद, उसमें एक अवगुण था। वो बिना सोचे-समझे किसी भी व्यक्ति या बच्चे के बारे में एक बार जो राय कायम कर लेती थी उससे उसे हिला पाना बहुत मुश्किल हो जाता था।
पर एक बार उसे इस अवगुण के कारण ऐसी शिक्षा मिली कि उसने दोबारा कभी बिना हकीकत जाने किसी के बारे में राय कायम करना बंद कर दिया।
उसकी कक्षा में एक छात्र था प्रकाश। मधुरिमा को वो एक आंख नहीं भाता था। इसलिए नहीं कि वो पढ़ाई में कमज़ोर था, बल्कि इसलिए कि वो ना तो कभी साफ सुधरे कपड़े पहन कर आता था, ना वो अपने नाखून काट कर रखता था। कभी समय पर उसका होमवर्क नहीं मिलता था। हर वक़्त कक्षा में खिड़की से बाहर झांकता रहता था।
मधुरिमा हर वक़्त उसे डांटती रहती थी। कभी कभी तो वो उसकी चुप्पी से इतना परेशान हो जाती थी कि उसे कक्षा से बाहर निकाल देती थी। आधे सत्र के बाद जब रिपोर्ट कार्ड बनीं तब मधुरिमा ने प्रकाश की रिपोर्ट कार्ड में उसकी ज़बरदस्त बुराइयां लिख डालीं। उसके कपड़े, नाखून, कक्षा में किसी भी एक्टिविटी में भाग ना लेने, जैसी कई बातें लिख डालीं।
रिपोर्ट कार्ड अभिभावकों तक जाने से पहले विद्यालय के उप-प्रधानाचार्य के पास जाती थी। जब उन्होंने मधुरिमा द्वारा प्रकाश की रिपोर्ट कार्ड में केवल उसकी कमियां लिखीं देखीं तो उन्होंने मधुरिमा को बुलाया।
"ये क्या है मधुरिमा? आपने प्रकाश की रिपोर्ट कार्ड में केवल उसकी बुराइयां ही लिखीं हैं? क्यों?" प्रधानाचार्य ने पूछा।
"और क्या लिखती मैम? लड़के में एक भी गुण नहीं हैं। वो खुद भी बहुत लापरवाह है और उसके माता पिता भी बहुत लापरवाह हैं।" मधुरिमा ने झट से उत्तर दिया।
प्रधानाचार्य ने उस समय मधुरिमा को कोई उत्तर नहीं दिया। पर अगले दिन सुबह उन्होंने मधुरिमा की टेबल पर प्रकाश की पिछली दो साल की रिपोर्ट कार्ड रखवा दी।
मधुरिमा ने बड़े उत्साह से उन्हें ये खोल कर पढ़ना शुरू किया कि चलो देखते हैं पिछली कक्षाओं में इसने क्या कारनामे किए हैं। पर जैसे- जैसे वो पढ़ती चली गई, वैसे-वैसे उसके चेहरे का रंग बदलता चला गया। दो साल पहले की रिपोर्ट कार्ड में लिखा था कि प्रकाश एक बहुत ही होनहार छात्र है। वह कक्षा में सबसे बढ़िया तरीके से साफ सुथरे कपड़े पहनकर आता है इसलिए उसे क्लीन बॉय ऑफ द ईयर का पुरस्कार भी दिया गया।
दूसरी रिपोर्ट कार्ड में लिखा था कि प्रकाश की माताजी के देहांत के बाद वो बहुत गुमसुम और उदास रहने लगा है। उसके पिता उसपर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहे। उसकी पढ़ाई-लिखाई भी ढंग से नहीं हो पाती क्योंकि घर पर कोई नहीं है उसे पढ़ानेवाला। इसलिए अब यह अध्यापिकाओं का फ़र्ज़ है कि प्रकाश को अंधकार से बाहर निकालें। अन्यथा वो सदा के लिए अंधकार में खो जाएगा।
यह पढ़ मधुरिमा कि आंखों से आंसू बहने लगे। वो रह-रह कर अपने आप को धिक्कार रही थी। उसकी आंखों के आगे वो सारे मंज़र घूमने लगे जब उसने साफ कपड़े ना पहनने पर प्रकाश का मज़ाक उड़ाया या उसे काम पूरा ना करने पर डांटा था।
उसने बस प्रकाश के बारे में एक राय कायम कर ली थी। पर प्रकाश की उस हालत के पीछे कितना गहरा दुख छिपा है, ये कभी उसने जानने की कोशिश ही नहीं की। वो सिर्फ प्रकाश और उसके माता पिता को ही उस हालात का ज़िम्मेदार ठहराती रही।
उस पल से ही उसने अपना नज़रिया बदल दिया। अब वो प्रकाश पर ध्यान देने लगी। उससे बातें करती। उसको सहज महसूस कराती। उसकी हर काम की तारीफ करती। कभी - कभी लंच ब्रेक में उससे अपना टिफिन शेयर करती।
अब प्रकाश भी मधुरिमा के साथ थोड़ा सहज महसूस करने लगा। उसके चेहरे की हंसी वापस आ गई। मधुरिमा का मातृत्व भरा स्पर्श जब उसे मिलता तो वो मन ही मन अपनी मां को याद कर प्रसन्न हो जाता।
अध्यापक दिवस वाले दिन सभी बच्चे मधुरिमा के लिए तोहफे लाए थे। प्रकाश भी मधुरिमा के लिए कुछ लाया था। पर वह देने में संकोच कर रहा था।
मधुरिमा ने बड़े प्यार से पूछा,"आप भी कुछ लाए हो प्रकाश?"
"जी मैम। पर …मैं उसे …अच्छी तरह पैक नहीं कर पाया।" प्रकाश हिचकिचाते हुए अपना तोहफा देते हुए कहा।
"कोई बात नहीं प्रकाश। आपके लिए तो तालियां बजनी चाहिएं, क्योंकि आपने खुद पैक किया है। ये सब तो मम्मी या पापा से पैक करवा के लाएं हैं।" मधुरिमा ने ये कहते ही ताली बजाना शुरू कर दिया। सारी कक्षा प्रकाश के लिए ताली बजाने लगी।
मधुरिमा ने तुरंत उसका पैकेट खोला तो उसमें एक इत्र की बोतल और एक सुंदर सा कंगन था। मधुरिमा को समझते देर नहीं लगी कि ये इत्र और कंगन उसकी स्वर्गीय मां के हैं। उसकी आंखें नम हो उठीं। उसने झट से इत्र की बोतल खोली और थोड़ा सा अपने ऊपर छिड़क लिया। और कंगन भी पहन लिए।
"वाह! बहुत बढ़िया खुश्बू है इसकी प्रकाश। बहुत बहुत शुक्रिया।" मधुरिमा ने भरे गले से कहा। "चलो अब सब बच्चे लाइन बना कर खेल के मैदान की तरफ चलना शुरू करेंगे।" मधुरिमा ने सबके तोहफे अलमारी में रखते हुए कहा।
सब बच्चे लाइन बना कक्षा से चले गए। प्रकाश लाइन में सबसे आखिर में था। बाहर निकलने से पहले उसने मधुरिमा को भाग कर गले से लगा लिया। और बोला,"आज आप में से मुझे मेरी मां की खुशबू आ रही है।"
ये कह प्रकाश डबडबाई आंखों से बाहर निकल गया और मधुरिमा स्तब्ध खड़ी सोचती रही कि कितना अच्छा हुआ कि वक़्त रहते प्रकाश के प्रति उसने अपना नज़रिया बदल दिया वरना प्रकाश सच में अंधकार में डूब जाता।
कहानी हमें एक बहुत गहरा संदेश देती है कि कभी भी किसी के प्रति अपना नज़रिया कायम करने से पहले उस इंसान की परिस्थिति को जान लेना बहुत आवश्यक होता है।
🙏
आस्था सिंघल
# शार्ट स्टोरी चैलेंज
#संदेशात्मक
# लेखनी
Abhinav ji
06-May-2022 06:50 AM
Nice
Reply
Seema Priyadarshini sahay
29-Apr-2022 08:57 PM
बहुत ही खूबसूरत कहानी
Reply
Sandhya Prakash
19-Apr-2022 12:17 PM
BAhut khoob
Reply